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तुम कभी कहती क्यों नहीं...

तुम कभी कहती क्यों नहीं?
क्या कहूँ मैं?
वही जो तुम महसूस करती हो...
क्यों? क्या आपको नहीं पता कि क्या महसूस करती हूँ मैं?
बातें घुमाओ मत सीधे से सवाल का सीधा सा जवाब दो...
क्या सुनना चाहते हैं आप?
कुछ भी नहीं, बस बाद में मत कहना कि मैने पूछा नहीं था...
कह दूंगी तो क्या मान जाओगे? 
नहीं , बस सुन लूंगा
जो मुझे चाहिए ,क्या मुझे मिल जाएगा?
क्या पता ? शायद,,
और ना मिला तो...
तो तुम जानो
कहना ज़रूरी है क्या?
क्यों तुम्हें नहीं लगता ??
मुझे डर लगता है...
किससे? मुझसे?
नहीं! आपके ना कहने से
तो मैने हाँ कब कहा था
तो क्या कभी नहीं कहोगे?
क्या?
हाँ और क्या??
कह तो रहा हूँ 
क्या
यही कि,
तुम कभी कहती क्यों नहीं,,,,,,,,,,

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